Tuesday, 2 May 2017

खुश हुं मै...



घर मे गुलाब का पौधा है;
पौधे में लगी कली को फुल बनता जब देखती हुं;
तब लगता है खुश हुं मै.

गांव में एक छोटीसी नदी बहती है;
नदी कि मदमस्त लहरो को जब मै बहता देखती हुं;
तब लगता है, खुश हुं मै.

नजदिकी मैदान मे रोज बच्चे खेलते है;
उनके मासूम चेहरे पर जब खिलखीलाहट देखती हुं;
तब लगता है, खुश हुं मै.

खुद को रोज आईने मी निहारते;
किसीकी याद जब पलके झुकाकर प्यारी सी मुस्कान छोड जाती है;
तब लगता है, खुश हुं मै.

कलम उठाकर शब्दो कि माला पिरोती हुं;
दीक को कागज पर हौले से निकालकर रखती हुं;
खुद से हि जब मिल जाती हुं;
तब लगता है, खुश हुं मै....


- मृण्मयी (मृणाली येलकर)

7 comments: